चचेरी बहन और मुझे वासना की आग लगी

Gorakhpur Ladki Sex

मैं अनिरुद्ध आपका हमारी वासना में स्वागत करता हूँ। मैं गोरखपुर का रहने वाला हूँ। दोंस्तों मैं हजारों बार कह चुका हूँ की लण्ड बुर नही चेहरा चोदता है। बस ऐसी ही कुछ अपनी कहानी है। मेरी गर्म गरम कहानी सुनकर सभी लड़कों का लण्ड खड़ा हो जाएगा और सभी लड़कियों की चूत गीली हो जाएगी। तो आपको कहानी सुनाता हूँ। Gorakhpur Ladki Sex

मेरी चचेरी बहन रागिनी की नई नई नौकरी लखनऊ में लगी थी। रागिनी ने बीटीसी का कोर्स किया था। उसने सरकारी फॉर्म भरा था। अब उसकी नौकरी लखनऊ में लग गयी थी। अभी फाइनल पोस्टिंग नही हुई थी। इसलिये मेरे चाचा ने मुझसे कहा कि मैं उसे लेकर लखनऊ चला जाऊ और काउंसलिंग करा लूँ।

इत्तिफ़ाक़ से रागिनी मेरी की उम्र की थी। कारन मेरे बॉप ने मेरी माँ को दिन रात चोदा था। वहीँ मेरे चाचा अंगद ने मेरी चची को सारी सारि रात चोदा था। तो मेरा  और रागिनी का जन्म एक ही साल हुआ था। मेरी उससे खूब पटती थी।

वैसे रिश्ते में तो रागिनी मेरी बहन लगती थी, पर हम लोगों की दोस्ती कुछ जादा ही थी। भाई बहन वाली बात नही थी। हालाँकि हम दोनों एक दूसरे को पसन्द करते थे। पर कभी रागिनी के साथ चुदाई करूँगा ऐसा नही सोचा था। मैं हर रात उसको फ़ोन करता था। हम दोनों अपनी अपनीं छतों पर चले जाते थे, और खूब बाते करते थे।

वो मुझे बताती थी कॉलेज में कौन कौन लड़का उसको लाइन देता है। कौन कौन उसको देख के सीटी मरता है। किस किस लड़की से वो चुदाई की बात करती है। मुझे हर रात वो बताती थी। रागिनी को चोदने का तो बड़ा मन था, पर चाचा एक नम्बर का कमीना और सीरियस आदमी था।

दोंस्तों, जब से रागिनी जवान हुई थी, जबसे उसकी छातियां उभर आई थी भोसड़ी का मेरा चाचा अपने घर में किसी को नही आने देता था। वो इतना शक्की था कि मुझ पर शक करता था। क्योंकि उसके बगल में ऐसा ही कांड हो गया था। लड़की अपने ताऊ के लड़के के साथ भाग गई थी।

तबसे मेरा चाचा जान गया था कि रागिनी को कोई घर का आदमी भी पता कर चोद खा सकता है। भाई यही मामला गड़बड़ हो गया था। चाचा उससे एक एक सेकंड  का हिसाब मांगता था। जब रागिनी कॉलेज या कोचिंग पढ़ने जाती थी, वो टाइम चेक करता था रागिनी कब घर से बाहर निकलती है कब लौटती है।

पर दोंस्तों, मोबाइल फोन चलने से बड़ी आसानी हो गयी थी। अब मैं रागिनी से सारी सारि रात बात कर लेता था और किसी को पता नहीं चलता था। इसलिये कभी रागिनी की चूत मारने को मिलेगी ये तो मैंने सोचना ही छोड़ दिया था। अब जाकर बड़ी जुगाड़ से मेरी किस्मत जागी थी।

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मेरे चाचा एक नंबर के लोभी थे। सोचते थे रागिनी नौकरी करे और खुद की शादी का पैसा खुद ही जोड़े। इसलिये उसको सभी सरकारी फार्म भरवाते थे। अब रागिनी की अच्छी मेरिट की वजह से उसका नौकरी में नाम आ गया था। पर लखनऊ जाकर शिक्षा विभाग के सामने जाकर सभी मार्कशीट और प्रमाण पत्र दिखाने थे।

चाचा के साइन में भयंकर दर्द हो रहा था। दिल की बीमारी की शिकायत थी। इसलिए भोसड़ीवाले की मुझसे गर्ज पड़ी। मुझको बुलाया। बेटा अनिरुद्ध!! देखो रागिनी के साथ लखनऊ चले जाओ! और सारा काम करवा देना। ज्वाइन करवा के कुछ दिन रहना और फिर मुझे फ़ोन करना। देखो रागिनी अभी नासमझ है। उसे अकेले मत छोड़ना!! चाचाजी बोले।

मुझे 10 हजार की गद्दी खर्च के लिए दी। रागिनी और मैं अगली सुबह बस से साथ निकल पड़े। बस जब गोरखपुर पार कर गयी। अब चाचा का भूत पीछे छूट गया था। अब हम दोनों आजाद थे। रागिनी को मैंने विंडो सीट पर बैठाया था। खुद उसके बगल बैठा था। रागिनी ने मेरा हाथ पकड़ लिया। मैंने अपने अंघुठे से सहलाने लगा।

आँखों ही आँखों में हम एक दूसरे से बाटे करने लगे और नजरों में एक दूसरे को चोदने लगे। मैं और रागिनी एक ही वर्ष में पैदा हुए थे। हम दोनों 21 साल के थे। बस पूरी फूल थी। अब दोपहर हो गयी थी। सभी यात्री सो गए थे। मैंने रागिनी के कंधे पर सिर रख दिया। कुछ देर बाद हाल्ट हुआ।

सभी यात्री जलपान करने नीचे उतर गए। वहां कई दुकानें थी। बस का ड्राइवर और कंडक्टर भी नीचे खाना खाने चले गए। सिर्फ हम दो ही अब बस में बचे। मैंने इधर उधर चेक किया। कोई नही था। मैंने रागिनी को बाँहों में भर लिया। उसके होंठ पीने लगा।

उसने हल्के हरे रंग का सलवार सूट पहन रखा था। ये रंग उस पर बहुत सुंदर लगता था। बिलकुल गुड़िया और माल लगती थी इस रंग में। मैंने मौका पाकर उसके मम्मे दाब लिए। होंठ पी लिए। थोड़ी बहुत बुर में सलवार के ऊपर से ही ऊँगली कर ली।

ये बात तो साफ दी की वो भीं चुदना चाहती थी। इसमें कोई  दोराय नहीं था। हम दोनों की आँखों ही आँखों में सह मति बन गई थी। मैं तो बस यही सोच रहा था कि रागिनी कहीं अकेली में कुछ वक़्त के लिए मिल जाए और इसको चोद लूँ जी भरके। बस यही दिमाग में था मेरे।

20 मिनट बाद बस के यात्री बस में लौटने लगे हम दोनों जल्दी से अलग अलग हो गए। रागिनी से अपने कपड़े ठीक कर लिए। बस फिर से चल दी। शाम 7 बजे तक हम दोनों लखनऊ पहुँच गए। हमदोनो ने एक होटल में कमरा ले लिया।

कमरे में हमदोनो आये तो दोनों थके हुए थे। बस में सफर इतना टेंशन वाला होता है कि क्या बताऊँ। खाना कमरे में।ही हमने मंगा लिया। खाना खाकर हम दोनों सो गये। रात 2 बजे एक नींद पूरी हो गयी। मैंने रागिनी को जगाया।

ओए रागिनी!! चूत देगी?? मैंने पूछा।

वो सो रही थी, पर फिर भी जग गयी। वो तैयार हो गयी। रागिनी ने लाल रंग की नाइटी पहन रखी थी। मैं उसके बगल ही लेट गया। हम दोनों चुम्मा चाटी करने लगे। मैंने उसको पूरा पूरा अपने आघोष में ले लिया। वो भी बिना किसी संकोच के मुझे चूमने चाटने लगी।

अपने सबसे डेंजर और सीरियस मिजाज चाचा की इकलौती लौण्डिया को मैंने चोदने जा रहा था। बड़ा कालेज होंना चाहिए इसके लिए। ये तो कहो किस्मत बुलंद थी की हम दोनों को अकेले नौकरी के छककर में इतना दूर लखनऊ आना पड़ा वरना रागिनी की चूत मारना तो नामुमकिन बात थी।

अब मैं अकेले में रात में रागिनी को खूब चुम चाट सकता था। अब मेरे इर्द गिर्द कोई नहीं था। मैंने रागिनी की ढीली नाइटी को उतार दिया। अब वो महरून ब्रा पैंटी में मेरे सामने थी। ये ब्रा पैंटी 500 रुपये की उसने एक मॉल से खरीदी थी। इसकी पिक उसने मुझे भेजी थी। मैंने उसकी ब्रा खोली वोली नही। बस ऊपर से उचका दी।

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रागिनी के स्तन मुझे दृष्टि गोचर हो गये। बहुत बड़े स्तन नही थे, पर ठीक ठाक 30 साइज के होंगे। अभी नयी नयी चूचियाँ थी। मै पीने लगा। अभी तक रागिनी को कई लड़के चोदना चाहते थे पर उसने किसी से लाइन नही ली थी। आज रागिनी मुझसे पहली बार चुद रही थी। मैं मस्ती से दूध पी रहा था।

उसको और अधिक गरम करने के लिए मैंने उसके कान के पीछे और गले में काट लिया। वो मचल गयी। किसके लकड़ी को जल्दी गर्म करना हों तो कान को कुतरो। गले को चूमो चाटों और हल्के दाँत से कुतरो। और लड़की गरम। वही मैं उसके मम्मे भी दबा रहा था। रागिनी मुझको पूरी तरह से सहयोग कर रहीं थी। उसने खुद पैंटी निकाल दी।

रागिनी! लण्ड मुँह में लेगी?? मैंने फुस फुसा कर?

पहले करो ना! वो बोली.

रागिनी पहले मेरा लण्ड तो चूसो!! मैंने कहा.

पहले करो ना वरना सुख जाएगी! वो बोली।

मैंने रागिनी की बुर चेक की। बिलकुल गीली हो गयी थी। मैंने महरून रंग की पैंटी उतार दी। रागिनी ने स्वतः पैर खोल दिये। कुछ देर के संघर्ष के बाद मैंने सील तोड़ने में कामयाबी पा ली। मैंने रागिनी को चोदने लगा। कुछ देर बाद उसको दर्द होना खत्म हो गया। अब वो कमर उछाल उछाल के चुदवाने लगी।  मैंने उसे खूब पेला। कुछ देर बाद मैं झड़ गया। अपना गर्म पानी मैंने उसकी बुर में छोड़ दिया। मेरा बदन अकड़ गया।

छोड़ दिया क्या?? रागिनी ने पूछा।

हाँ! मैंने कहा।

उसने अपनी पैंटी से ही माल पोछ दिया। अब मैं बेड पर लेट गया। रागिनी मेरा लौड़ा चूसने लगी।

कभी इससे पहले चुसा है?? मैंने उससे पूछा।

नही!! वो बोली.

तो आज जी भरके चूस ले! मैंने कहा। हम दोनों हँस पड़े। रागिनी को मैंने अपनीं गोद में टेढ़ा बैठा लिया। वो मेरा लण्ड चूसने लगी। मैंने उसकी बुर को गोल गोल सहलाते हुए उसने ऊँगली करने लगा। उसके मम्मे भी दबाने लगा। वो बिना संकोच के मेरा लौड़ा चूस रही थी।

मेरी दोनों गोलियां भी चूस रही थी। कुछ देर बाद हम दोनों आपसी सहमति से 69 की पोजीशन में आ गए। मैं उसकी अभी अभी ताजी फ़टी बुर पिने लगा। वो मेरा लौड़ा चूसने लगी। मैंने 69 की पोजिशन के बारे में बहुत सुना था, पर कभी करने का सौभग्य नही मिला था। चलो किस्मत से आज करने को मिल गया।

मैं रागिनी की बुर पीता और उसमें ऊँगली भी करता। वो अपना पिछवाड़ा ऊपर उपर उठाने लगी। मुझे खुसी हुई। वो भी पहली बार लण्ड चूस रही थी और मैं भी पहली बार बुरपान कर रहा था। दोंस्तों, कुछ देर बाद फिर लड़ाई का मौसम बना। मैं लेट गया। रागिनी मेरे ऊपर कमर पर चढ़ कर बैठ गयी।

रागिनी!! ऐसे कभी चुदाई की है क्या?? मैंने पूछा.

तो आज कर ले! मैंने कहा। एक बार फिर से हम दोनों हँस पड़े।

मैंने उसे सिखाया की कैसी उछल उचलके चुदवाना है। रागिनी स्लिम ट्रिम ही थी। भारी लड़कियों को इस तरह बैठकर चोदने में खासी दिक्कत होती है। मैंने अपना लण्ड उसकी बुर में डाल दिया। रागिनी ऊपर नीचे करने लगी। मैंने उसको चोदने लगा।

उसके आम देखके खासी वासना भड़क गयी। आम हिलने लगे। मैंने दोनों हाथों में आम ले लिए। धीरे धीरे रागिनी लण्ड पर बैठकर चोदना सिख गयी। मैं उसके चुत्तड़ और पीठ सहलाने लगा। चुदाई करते करते 4 बज गए। हम दोनों सो गए। सुबह हम दोनों कॉउंसलिंग का काम करवा आये। उसको सहायक अध्यापक का नियुक्ति पत्र मिल गया। शाम को हम होटल लौट आये।

नौकरी की ढेरों बधाइयाँ!! मैंने कहा।

वो कूद कर मेरी गोदी में चढ़ गई। खाने के बाद हमने बत्तियां बुझा दी। नौकरी पाने की खुशि थी। इसलिए दोगुनी खुशि थी। सबसे पहले मैंने उसकी बुर पी। फिर मैंने उसको कुतिया बना दिया। डोगी स्टाइल में मैं आ गया। दोनों टाँगों को सिकोड़ने से उसकी बुर एक्स्ट्रा टाइट हो गयी थी।

पीछे से जब मैंने लण्ड लगाया तो लगा ही नहीं। मैंने रागिनी की टाँगों को हल्का सा खोला। लण्ड बुर में डाल दिया। फिर दोनों पैरों को सिकोड़ दिया। अब खूब कसावट मिलने लगी। मैं मजे से अपनी चचेरी बहन को चोदने लगा। पीछे से चोदने में ही दोंस्तों असली कसावट मिलती है। मैं मजे से लेने लगा। बिच में रागिनी के चुत्तरो को सहलाता था। गाण्ड में ऊँगली भी कर देता था।

रागिनी को पेलते पेलते मैं बुर की सुंदरता में खो गए। बहुत सुंदर बुर थी दोंस्तों। मैंने देखा रागिनी चुदास के चरम सुख में डूब गयी है। मैंने जरा सा थूक ऊँगली में लिया और गाण्ड पर मल दिया। अब मैंने अपनी 2 लम्बी उँगलियाँ उसकी गाण्ड में डाल दी और फेटने लगा।

रागिनी चिल्लाने लगी। अनिरुद्ध भैया! छोड़ो मुझे बहुत दर्द हो रहा है। वो चिल्लाने लगी। मैंने एक नही सुना। मैं लगातार उसकी गाण्ड को अपनी 2 उँगलियों से फेटता रहा और नीचे से उसकी बुर मरता रहा। उसने भागने की भी कोसिस की, पर मैंने उसे नही भागने दिया। खूब देर चोदकर भी जब मैं आउट नही हुआ तो मैंने लण्ड बुर से निकाला। रागिनी ने आराम की साँस ली। फिर मैंने लण्ड उनकी गाण्ड में पेल दिया।

अनिरुद्ध भैया! इसमें।बहुत दर्द हो रहा है। इसमें मत करो! रागिनी बार बार कहती रही।

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मैंने एक ना सुनी। अपने मोटे ताजे लण्ड से अभी अभी जवान हुई अपनी 21 साल की बहन को मैं चोदता रहा। इस कली का सारा रस तो मैं पी लिया था दोंस्तों। कुछ देर बाद मैंने पानी छोड़ दिया। पर अभी भी चुदास ना बुझी। रागिनी को बेड पर लिटा दी। दोनों मम्मे पीये। लण्ड था मेरा की गूलर का फूल था। फिर से खड़ा हो गया। मैंने रागिनी की दोनों छातियों के बीच लण्ड रखा। दोनों बूब्स को दोनों हाथों से बीच की दिशा में दाबा और रागिनी के बूब्स चोदने लगा। ये वाला काम खासा मनोरंजक था। इसमें मजा भी पूरा मिला दोंस्तों।

मैंने घण्टों अपनी बहन के बूब्स को चोदा। लण्ड एक बार फिर खड़ा था। रागिनी पर मैं अब पूरा लेट गया। जैसे ही मैंने अपना लौड़ा उसकी बुर में डाला उसने दोनों पैर हवा में उठा लिए। मैं उसकी बुर मारने लगा। रागिनी ने आँखें बंद कर ली। अपनी बहन को बीवी समझ के मैं उसको चोदने लगा। उन दो दिनों में तो मैंने रागिनी के सतीत्व को पूरी तरह से ख़त्म और भंग कर दिया। खूब बजाया उसको मैंने। फिर चाचा वहां आ गये और मैं घर लौट आया। पर दोंस्तों वो 2 दिनों का वन नाईट स्टैंड मैं कभी नहीं भूल पाया।

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