सेक्स को तड़पती बेटी की कहानी

सेक्स को तड़पती बेटी की कहानी

अभी शाम होने को आयी थी। आज ना जाने क्यों मुझे घर में अकेला-अकेला लग रहा था। वो मौसम होता है ना, आंधी के बाद वाला। खुला आसमान, मंदी हवा, आसमान का रंग हल्का सा केसरी, और मेरी मदहोशी और पागलपन को बढ़ता हुआ। छोटा भाई अभी बहार डोल रहा होगा। माँ नीचे खाने की तैयारी में लीन होगी और पापा दफ्तर से लौटते होंगे। मैं अकेली हूँ, मेरा मन अकेला है, मेरा शरीर अकेला है, और मैं अकेला नहीं रहना चाहती। सेक्स को तड़पती बेटी की कहानी.

मुझे अपनी धड़कन का बढ़ना महसूस हो रहा है। मानो कोई ज़ोर-ज़ोर से मेरे शरीर के अंदर से मेरे दिल के दरवाज़े को बजा रहा हो और चीख रहा हो, “आज, आज, आज, आज!” जब मुझसे रुका नहीं गया तो मैंने धीरे से अपने बिस्तर के नीचे से एक पुराना सा बक्सा निकला और अपनी मेज पर रख दिया। हौले से मैंने दरवाजे के बहार झाँका और रुक-रुक के बिना आवाज़ किये अपना दरवाज़ा बंद कर के उसकी कुण्डी लगा दी।

अब मैंने हौले से अपने शीशे में झाँका और और अपने हाथ से अपने बालों को अपने कान के पीछे कर अपनी चुन्नी को पकड़ लिया। अपनी आँखों में मुझे भूख दिख रही थी और अपने होठों पे प्यास। मेरे होंठ सूखे थे। हलके से मैंने अपने होंठ को अपने दांतों के बीच में दबाया और अपनी चुन्नी को फर्श पर धकेल दिया। शीशे में मुझे मैं नहीं, एक मच्छली दिख रही थी, जिसे पानी चाहिए था।

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शाम का हर पल मुझे पागल कर रहा था। अपनी कुर्सी पर पड़े बैग को मैंने अपने मेज़ पर टिका दिया और कुर्सी पर बैठ कर धीरे से उस बक्से को खोला। मेरी सांसें बढ़ने लगीं और दिल की दीवारों को तोड़ वो बहार निकल ही आया था। मैंने आहे से अपने होठों को अपनी जीभ से नाम किया और थूक सटका। फिर अपने दवाज़े की ओर देखा और अपना हाथ को बक्से में पड़े काले अंडरवियर पर रख दिया।

कपडा अभी भी नम था। हौले से मैंने उसे उठाया और चेहरे पर लगा लिया। धक् धक् , धक् धक् , धक् धक! अपनी बंद आँखों से मुझे बस अपना धड़कता हुआ दिल दिख रहा था और उसकी धड़कन में से उठने वाला नाद जो बार बार एक ही नाम बोल रहा था, “पापा, पापा, पापा, पापा, पापा!” कपडे की नमी मुझे मदहोश कर रही थी। मदहोश छोटा शब्द है। मैं उसे अपने चेहरे पर लगा कर पागलपन और तड़प के बीच घडी की सुई की तरह झूल रही थी जो किसी भी पल पापा को घर लाती होगी।

मैं कुर्सी से उठ कर अपने पलंग पर कूद गयी। आहिस्ता से मेरा हाथ अपने कुर्ते को उठाने लगा। यहाँ मेरी जीभ ने पहली बार उस सुगंध को छुआ था, वहां मेरा हाथ उस सुगंध को वहां ले जाना चाहता था जहाँ अभी बस मेरी तन्हाई बस्ती थी। जिस गति से मैंने अपने कुर्ते को उठा कर अपने सलवार के नाड़े को खोला बस उसे ही शायद कपडे फाड़ना कहते हैं। अपना थूक मैंने उस अंडरवियर पर लगाया और उसे चाटने लगी।

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मेरी आँखें बंद थी। अपनी सलवार मैंने नीचे धकेल दी और अपनी पैंटी के इलास्टिक को उठा कर अपने हाथ को धीरे धीरे नीचे ले जाने लगी। पता नहीं क्यों मेरे पैर हिलने लगे और मेरे कानों में अजीब से मचलने वाली गर्मी निकलने लगी। अब आंखें बंद रखना मेरे लिए मुश्किल हो गया। मुझे अपनी आँखों से अपनी बेशर्मी मह्सूस करनी थी। शब्दों में वो वेग कहाँ जो उस स्वाद को बयां कर पाएं।

मेरी जीभ उस स्वाद को महसूस कर रही थी। थोड़ा नमकीन, कुछ ऐसा जैसे संतरा छीलने पर उसकी पहली महक। पहले मैं उस कपडे को सुकून से अपने मुहं में भिगो लेती, दूसरी ओर से अपनी ऊँगली उस चड्डी में डालकर यूं चूसती जैसे मेरे पापा को लंड हो। और उसका स्वाद मेरे मुहं में घुल जाता। फिर में उस नम कपडे को अपनी आँखों पर रख लेती और मंदे से अपने गीले हाथ से अपने मम्मों को दबाती।

 ना जाने कितनी बार इस कपडे को पापा के रस का स्पर्श हुआ होगा, कितने ही रोज़ पापा ने इससे उतरा होगा और माँ को अपना प्यार दिया होगा। क्या ये दरवाज़ा है उनके प्यार का? अपनी आँखों से मेरी नाक तक और नाक के रास्ते मेरे होठों से रगड़ता हुआ वो गीला कपडा यूँ मेरी गर्दन तक जाता जैसे मुझे मेरे पापा की गर्मी में, उनकी प्यार में, उनकी मर्दानी खुशबू में रंग रहा हो, और उसकी लेहेर बिजली की तरह मेरे पूरे शरीर में दौड़ जाती जो बार-बार मेरी हाथ को मेरे पैरों के बीच धकेलती।

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मेरी कल्पना में मेरे पापा मेरे ऊपर अपने वज़न को डाल कर मेरे होठों को अपने होठों से चूस रहे हैं। उनका हाथ मेरे बालों को सेहला रहा है और मेरी आँखों में अपनी आँखें डाल के वो वासना से तृप्त मुस्कान का दीदार मुझे करा रहे हैं। उनका गर्म हाथ मेरी कमर को थाम के मेरे स्तनों की ओर बढ़ रहा है जो उनकी छाती के बोझ के नीचे दबे हैं।

मेरी कल्पना में मेरा बाप अपनी जीभ निकाल कर मेरे होठों को चाटता है और मेरे गालों को, मेरी आँखों को चूमता है, और उसके चेहरे की खुरदरी त्वचा मेरे चेहरे से रगड़ती है। वो मेरी कल्पना में मेरे कानों में अपनी भारी-गहरी आवाज़ से बोलता है, “आरती, मुझे अपना बना ले, सनम।” और जोर से अपने लंड से धक्का देता है; मेरे पैरों को अपने पैरों से दबा लेता है।

जैसे ही मेरी ऊँगली ने मेरे भग-शिशन को छुआ, मैंने उस अंडरवियर को अपने मुहं में भर लिया और कल्पना करने लगी कि यही कपडा पापा के लंड को सहलाता होगा। यही शायद कभी-कभी नींद में उनके रस को अपने अंदर भर लेता होगा, इसी कपडे से लग कर उनके अंडे वो रस बनाते होंगे जो मुझे पीना हैं, जिसने मुझे बनाया है, जिससे मैं हूँ। ऐसा क्या है जो इस कपडे को नसीब हो सकता है लेकिन मुझे नहीं?

कैसा लगा होगा मेरी माँ को मेरे बाप की छाती पर लेटना, मेरे बाप के हाथों को अपने शरीर को छूने देना। उसके लंड को अपने हाथों में भरना, उसके होठों से अपने होठों को मिलाना, उसकी खाल का स्पर्श, उसके होठों का एहसास अपने निप्पल्स पर, उसके चेहरे को अपने बालों में ढक लेना, उसकी जीभ को अपने होठों से चूसना और अपने मुहं में भर लेन। कैसा लगा होगा मेरी माँ को मेरे बाप का गरम लंड अपने बूब्स में रगड़ना।

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मेरी माँ अक्सर कहती है मैं बड़ी हो रही हूँ, पर मैं इतनी बड़ी क्यों नहीं हो रही कि वो कर सकूं जो मेरे बाप ने उसे करने दिया, और उसको किया। अपने मुहं से निकाल कर मैंने उस चड्डी को अपनी ब्रा में धकेल दिया और उसकी नर्माहट मुझे अपने बूब्स पर महसूस होने लगी मानो पापा ने अपने हाथों को अपने थूक से नहला के मेरे स्तन को पकड़ लिया हो। मेरी ऊँगली मेरी फुद्दी को यूं सेहला रही थी, कि मेरे पैर जोर-जोर से मेरे पलंग के गद्दे में गढ़ने लगे।

पैर के ऊपर पैर। यहाँ मेरी आँखों में पापा की कामुकता इतनी समां गयी के एक आंसूं मे्रे गोर चेहरे से होते हुआ मेरे होठों पे आ गिरा जो पापा का नाम दोहरा रहे थे। कैसा लगता होगा माँ को मेरे बाप की गोदी में सोना। कैसा लगता होगा उसे मेरे बाप के कन्धों पर अपना सर रखना और उसका हाथ थाम कर उस खुशनुमा चेहरे को देख कर मुस्कुराना। थाम लेना उस पल को और फिर कल दोबारा से उसे जीना। “सेक्स को तड़पती बेटी”

मैं इतनी मचल गयी की ज़ोर से मेरा पैर मेरे पलंग के पाए में टकराया और ना जाने कैसे पास रखी मेज पर रखी चाय कि प्याली नीचे गिर गयी और बोहोत तेज़ आवाज़ हुई… …बाकी अगली कहानी में। ये यहाँ मेरी पहली कहानी है। अभी कहानी में बोहोत मोड़ और पड़ाव बाकी हैं पर मुझे पता नहीं आपको ये कहानी पसंद आएगी या नहीं।

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मैंने पहले कभी यहाँ कहानियां नहीं पढ़ीं, मैंने केवल ढेरों उपन्यास पढ़े हैं; पर मेरा कौमार्य मुझसे कहता है की मेरे शब्द आपके अंदर की आग को हवा देंगे। अगर ऐसा है और आप मेरे शब्द पढ़ना चाहेंगे तो मुझे artsharma765@gmail.com पर लिखिए।

अगर मुझे लगा की आपको मेरे शब्द पसंद आये तो उम्मीद करुँगी की आपको मेरा दिल भी पसंद आएगा। मेरा दिल अकेला है और मेरा शरीर कुंवारा।अगली कहानी में आप मेरे दिल का स्पर्श करेंगे। अपना ख्याल रखियेगा। -आरती, 21 वर्ष परिशिष्ट भाग: यदि आपके ईमेल मुझे पसंद आये तो आप मेरी अगली किसी कहानी में किरदार होंगे, शायद ज़िन्दगी में भी। मिलते है!

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